स्वातंत्र्य बोध के बाद

जयघोष मनुजता का सुनकर
सुनकर उद्यम के कर्म महान
सीने जैसा रोम रोम कर
उत्साहित हूँ मैं वितान
मात्र मुक्ति के चार दिनों में
जान गया मैं मूल्य मुक्ति का
बंधन की पीड़ा जानी
जाना अबाध्य का सहज हास
परिरोध बोध के परिचय से
निरावरोध की महिमा जानी
जाना दृष्टि ब्रह्माण्ड पार
जाना स्वर चीत्कार पार
मधु मदिर स्निग्धता पहचानी
पहचाना कोकिल स्वर निनाद
जाना जीवन है निषिद्ध रूप
मृत्यु को जाना अनन्त पार

बाद उसके अभिभूत हुआ मैं
रिक्त स्वर्ण संदूक हुआ मैं
प्यास जगी एक सहज साथ की
प्रेमासक्त हो तृप्त हुआ मैं
फिर शून्य -पूर्ति संवरण हुआ
और पाँचवे दिन अवतरण हुआ
आपूर्त प्रेममयी मेधा का
एकांग सुन्दरी नेहा का
वह एक हृदय नैनों वाला
वह एक हृदय कानों वाला
नासा वाला,अधरों वाला
वह काम कमान भँवों वाला
वह दो कपोलमय एक हृदय
वह एक हृदय छह इन्द्रियमय
वह एक सदा-संतान, प्रिये!
वह स्पंदन का रूप अजर
वह मादकता की हँसी अमर
वह कामुकता की राशि-निकर
वह एक कामना जीवन की
मृत्यु विरुद्ध उन्मीलन की

उसी एक का प्रेमी बन
उद्भूत सृष्टि का सम्मेलन
पुरुषार्थ की वह रश्मिका अखिल
परमार्थ की दीपशिखा उज्ज्वल
संघर्ष की तपती छाती को
है वही एक ज्योत्स्ना विमल
दुःख के गभीर इस सागर में
है वही एक मुस्कान अटल
टलमल होती जग-नौका में
जब लक्ष्यहीन हुए दृष्टि-पटल
जब मार्ग भी होने लगें ओझल
है बनी वही आशा का तल
है वही एक जय का संबल
है वही एक स्वस्ति अविरल
जिसके वरण में निश्चिंत सफल
आँचल में पुष्ट हुए दुर्बल
है जिसकी गोद में विश्व सकल
है जिससे अनादि अनंत अतल
उद्भव की वही आधारशिला
है वही विनाश की एक शकल
उस एक के प्रेम में पड़कर ही
उस एक का आँचल पाकर ही
कहलाया हूँ मैं पुरुष प्रबल
जिसकी थाती नारी निर्मल
वह योनिमयी पयमयी श्री
वह धवल रूप नारी निर्मल
वह धवल रूप नारी निर्मल
वह धवल…

सोनल गुप्ता ‘नेहार्य’

1 thought on “स्वातंत्र्य बोध के बाद”

  1. Sonal bhai ek vinamra nivedan ki mujh jese chalte firte saahitya premiyon ke liye kuch kathin shabdon ka arth bhi rachna ke ant mein ullekhit karein…. Aapi book kab publish ho rahi hai?? U r just awesome… Hats off..

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